"तुम अकेले नहीं हो — 'मैं' और 'मेरा' के भ्रम की कहानी"
प्रिय शिष्य,
जब हम अपने अंदर गहराई से झांकते हैं, तो अक्सर एक आवाज़ सुनाई देती है — "मैं हूँ," "यह मेरा है," "मेरा अधिकार है।" यह आवाज़ हमें अपनी पहचान देती है, लेकिन क्या यह सचमुच हमारा असली स्वरूप है? या फिर यह केवल एक भ्रम है, जो हमें सीमित करता है? आज हम भगवद गीता के प्रकाश में इस भ्रम को समझने का प्रयास करेंगे।