भावनाओं के तूफान में शांति का दीप जलाएं
साधक, जब अंदर की आग भड़कती है, क्रोध, अहंकार और ईर्ष्या की लहरें मन को घेर लेती हैं, तब ऐसा लगता है जैसे संसार ही हमारे खिलाफ हो। पर जान लो, तुम अकेले नहीं हो। हर मनुष्य के भीतर ये भाव आते-जाते रहते हैं। पर असली वीर वही है जो इन भावों को समझकर, उन्हें नियंत्रित कर अपने भीतर की शांति को बनाए रखता है।
🕉️ शाश्वत श्लोक
अध्याय 2, श्लोक 62-63
ध्यान दें: यहाँ कृष्ण ने मन की अशांति को समझाया है।