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Mind Emotions & Self Mastery
Life Purpose, Work & Wisdom
Relationships & Connection
Devotion & Spritual Practice
Karma Cycles & Life Challenges

अपनी राह पर चलो, चाहे कठिन हो
साधक, जब हम दूसरों के धर्म या रास्ते को देखकर अपनी तुलना करते हैं, तो मन में कई उलझनें आती हैं। यह सवाल कि "किसी और के धर्म में सफल होने से बेहतर है कि आप अपने धर्म में असफल हों?" बहुत गहरा है। इसका उत्तर गीता की शिक्षाओं में छिपा है, जो हमें हमारी व्यक्तिगत यात्रा और धर्म का सम्मान करना सिखाती हैं।

कर्म की महिमा: जब करना ही जीवन की राह बन जाए
साधक, जीवन में अक्सर हम सोचते हैं कि अगर हम कुछ न करें तो शायद समस्याएँ भी न आएँ। पर क्या सचमुच निष्क्रिय रहना ही समाधान है? भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म और अकर्म की इस उलझन को बड़ी गहराई से समझाया है। आइए, इस रहस्य को मिलकर खोलें।

कर्म का सार: “तुम्हें कर्म करने का अधिकार है, फल की नहीं” — शांति की पहली सीढ़ी
साधक, जब हम जीवन के संघर्षों में उलझते हैं, तो यह वाक्य हमें एक गहरा और सरल संदेश देता है: तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके परिणामों पर नहीं। यह समझना बहुत जरूरी है क्योंकि हम अक्सर फल की चिंता में इतना खो जाते हैं कि कर्म करना भूल जाते हैं। आइए, इस रहस्य को भगवद गीता के श्लोकों से समझते हैं।

जीवन और मृत्यु के पार: शोक का सच्चा अर्थ समझना
साधक, जब हम कहते हैं — “आप उन लोगों के लिए शोक मनाते हैं जिनके लिए शोक नहीं मनाना चाहिए,” तो यह वाक्य हमें जीवन, मृत्यु और आत्मा के गहरे सत्य से परिचित कराता है। यह आपकी पीड़ा को कम करने का नहीं, बल्कि उसे समझने और उससे ऊपर उठने का एक दिव्य संदेश है। आइए, गीता के प्रकाश में इस उलझन को सुलझाते हैं।

डर के अंधकार में भी उजियारा है
साधक, जब भय तुम्हारे मन को घेर लेता है, तो समझो कि यह एक सामान्य मानवीय अनुभूति है। तुम अकेले नहीं हो। जीवन के हर मोड़ पर, हर दिल में कभी न कभी डर की छाया आती है। लेकिन याद रखो, भगवद गीता हमें सिखाती है कि भय के पार भी एक स्थिर, निर्भीक आत्मा है जो तुम्हारे भीतर हमेशा मौजूद है। चलो, मिलकर उस प्रकाश की ओर कदम बढ़ाएं।