फिर से शुरुआत की ओर: पश्चाताप का प्रकाश
साधक,
तुम्हारे मन में जो पश्चाताप और अपराधबोध है, वह तुम्हारे भीतर बदलाव की पहली किरण है। ये भाव तुम्हें अपने अतीत से जुड़ी गलतियों को समझने और उनसे मुक्त होने का अवसर देते हैं। याद रखो, कोई भी मनुष्य पूर्ण नहीं होता, और हर कोई अपने कर्मों का उत्तरदायी है। परन्तु यही गीता हमें सिखाती है कि सच्चे मन से पश्चाताप करने का अर्थ है अपने कर्मों को समझना, उनसे सीखना और आगे बढ़ना। तुम अकेले नहीं हो, और तुम्हारा यह सवाल तुम्हारे आध्यात्मिक विकास का संकेत है।
🕉️ शाश्वत श्लोक
श्लोक: