अहंकार की दीवार तोड़ो, समर्पण की राह पकड़ो
साधक, अहंकार हमारे भीतर की वह दीवार है जो प्रेम, शांति और सच्चे समर्पण के प्रवाह को रोकती है। यह समझना जरूरी है कि अहंकार हमारे असली स्वरूप का आवरण मात्र है, और इसे धीरे-धीरे पहचान कर छोड़ना ही सच्ची भक्ति की शुरुआत है। तुम अकेले नहीं हो इस यात्रा में, हर भक्त इसी संघर्ष से गुजरता है।