समर्पण और स्वीकृति: दो साथी या एक ही राह के दो पड़ाव?
साधक, जीवन की यात्रा में अक्सर हम दो शब्दों के बीच उलझ जाते हैं — समर्पण और स्वीकृति। क्या ये दोनों एक ही हैं? या फिर उनके बीच कोई अंतर है? यह भ्रम स्वाभाविक है, क्योंकि दोनों ही मन को शांति और मुक्ति की ओर ले जाते हैं। आइए भगवद गीता के प्रकाश में इस सवाल को समझें और अपने मन को स्पष्ट करें।