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समर्पण की शक्ति: जब आत्मा कृष्ण के चरणों में खो जाती है
साधक, तुम्हारा यह प्रश्न उस गहरे प्रेम और विश्वास की ओर संकेत करता है जो हर मानव हृदय में छिपा होता है। समर्पण केवल एक भावना नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्ध अनुभूति है, जो हमें सांसारिक बंधनों से मुक्त कर परम शांति की ओर ले जाती है। चलो, इस रहस्य को भगवद गीता के दिव्य शब्दों के माध्यम से समझते हैं।

चलो यहाँ से शुरू करें: जब मन उलझन में हो, तो कृष्ण का संदेश साथ है
प्रिय शिष्य,
जब जीवन के रास्ते कठिन और भ्रमित करने वाले लगें, तब एक सरल लेकिन गहरा संदेश हमें मार्ग दिखाता है। "सर्व धर्मान् परित्यज्य..." यह श्लोक हमें बताता है कि सच्ची भक्ति और विश्वास का मार्ग कैसे अपनाना चाहिए। चलिए, इस दिव्य शब्दों के साथ अपने मन की गहराई में उतरते हैं।

समर्पण की शक्ति: कृष्ण की इच्छा में विश्वास की यात्रा
प्रिय शिष्य,
जब हम अपने जीवन की उलझनों और अनिश्चय के बीच खड़े होते हैं, तब सबसे बड़ा सहारा होता है उस दिव्य इच्छा के सामने समर्पण करना, जो हमारे प्रभु, भगवान श्रीकृष्ण की होती है। यह समर्पण केवल एक क्रिया नहीं, बल्कि एक गहरा अनुभव है, जो हमें भीतर से जोड़ता है उस अनंत शक्ति से जो हमारे जीवन को सही दिशा देती है।

समर्पण की गंगा में डूबो अपनी आत्मा
साधक,
जब मन उलझनों और संदेहों के समुद्र में तैरता है, तब पूर्ण समर्पण की वह धारा हमें किनारे तक ले आती है जहाँ शांति और विश्वास का सागर मिलता है। तुम अकेले नहीं हो, हर भक्त के मन में यही प्रश्न उठता है — क्या वाकई समर्पण से सब कुछ संभव हो सकता है? आइए, भगवान श्रीकृष्ण के शब्दों में हम इस रहस्य को समझें।

अहंकार की जंजीरों से मुक्ति: समर्पण की शक्ति
साधक, जब अहंकार हमारे भीतर बढ़ता है, तो वह मन को जकड़ लेता है, हमें दूसरों से अलग और श्रेष्ठ समझने पर मजबूर करता है। यह एक भारी बोझ है जो हमारे मन को अशांत करता है। परन्तु भगवद् गीता हमें समर्पण की राह दिखाती है, जिससे यह अहंकार धीरे-धीरे कम होता है और मन शांत होता है। तुम अकेले नहीं हो, यह संघर्ष हर मानव के जीवन का हिस्सा है। चलो, इस पथ पर साथ चलें।

अहंकार की जंजीरों से मुक्त होने का मार्ग
साधक, जब अहंकार मन में घर कर जाता है, तब वह हमारे भीतर की शांति और सच्चाई के प्रकाश को ढक देता है। तुम अकेले नहीं हो, हर मानव के जीवन में अहंकार की लड़ाई होती है। यह समझना ज़रूरी है कि अहंकार को वश में करना क्यों आवश्यक है, ताकि हम अपने भीतर के सच्चे स्वरूप को पहचान सकें और जीवन में सच्ची प्रगति कर सकें।

भय की परतों से परे: समर्पण की शक्ति
प्रिय शिष्य,
तुम्हारे मन में जो भय और चिंता की लहरें उठ रही हैं, उन्हें समझना स्वाभाविक है। जीवन में भय आना सामान्य है, पर क्या तुम जानते हो कि समर्पण की अग्नि उन भय के बादलों को चीर सकती है? चलो, हम इस गूढ़ प्रश्न का उत्तर भगवद गीता के अमृत वचन से खोजते हैं।

डर से विश्वास की ओर — एक नए सफर की शुरुआत
साधक, यह जान लो कि तुम्हारा डर तुम्हारे भीतर की एक चेतावनी है, जो तुम्हें सावधान करता है। पर याद रखो, डर ही तुम्हारा अंत नहीं, बल्कि एक नए विश्वास की शुरुआत हो सकता है। तुम अकेले नहीं हो; हर महान योद्धा ने अपने मन के भय को पार कर विश्वास की शक्ति को अपनाया है। चलो, भगवद गीता के प्रकाश में इस परिवर्तन का मार्ग खोजें।

घबराहट की लहरों में भरोसे का दीपक जलाएं
साधक, जब मन में घबराहट का तूफ़ान उठता है, तब ऐसा लगता है जैसे सब कुछ अनिश्चित और भयावह हो गया हो। यह स्वाभाविक है। जीवन की हर प्रक्रिया में उतार-चढ़ाव आते हैं, और घबराहट भी उनके बीच एक संकेत है कि कुछ नया सीखने या समझने का समय है। आइए, भगवद् गीता के अमृत श्लोकों से उस भरोसे का मार्ग खोजें जो तुम्हारे मन को शांति और स्थिरता प्रदान करेगा।

चिंता के बादल में भी तुम्हारा साथ है
प्रिय शिष्य, जब जीवन की घटनाएँ हमारे नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं, तो मन में बेचैनी और चिंता उठना स्वाभाविक है। यह अनुभूति तुम्हें अकेला महसूस करा सकती है, पर याद रखो, यह भी एक गुजरता हुआ मौसम है। भगवद गीता में भगवान कृष्ण ने हमें ऐसे समय में भी स्थिरचित्त रहने का मार्ग दिखाया है। चलो, मिलकर इस चिंता के जाल से बाहर निकलने की राह खोजते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥

(अध्याय 2, श्लोक 48)