शांति की ओर एक कदम: परिणामों से मुक्त होकर ध्यान केंद्रित करना
साधक, यह प्रश्न तुम्हारे भीतर की गहराईयों से उठा है — जब हम अपने कर्मों के फल की चिंता में उलझ जाते हैं, तब मन विचलित होता है और ध्यान भटकता है। जान लो, तुम अकेले नहीं हो। हर साधक इसी द्वंद्व से गुजरता है। चलो, भगवद गीता की अमृत वाणी से इस उलझन को सुलझाते हैं।
🕉️ शाश्वत श्लोक
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
(भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 47)