साथ रहो, पर खुद के भी मालिक बनो
साधक, यह सवाल तुम्हारे भीतर की उस गहराई से उठ रहा है जहाँ प्यार और स्वतंत्रता की जटिलता एक साथ नृत्य कर रही है। यह समझना बहुत जरूरी है कि जुड़ाव का मतलब बंदिश नहीं, बल्कि एक ऐसा रिश्ता है जिसमें तुम अपने अस्तित्व की पूर्णता को भी महसूस कर सको। तुम अकेले नहीं हो, हर व्यक्ति इस संतुलन की खोज में है। चलो, गीता के प्रकाश में इस रहस्य को समझते हैं।
🕉️ शाश्वत श्लोक
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय |
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ||
— भगवद्गीता 2.48