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व्यसन के जाल से मुक्ति की ओर पहला कदम
साधक, जब मन किसी आदत या व्यसन में फंस जाता है, तो वह अपने आप को खो देता है। यह एक ऐसा जाल है जो मन को भ्रमित करता है और आत्मा की शांति को छीन लेता है। तुम अकेले नहीं हो, हर व्यक्ति के मन में कभी न कभी ऐसी लड़ाई होती है। आइए, भगवद गीता के दिव्य प्रकाश से इस उलझन को समझें और उससे बाहर निकलने का मार्ग खोजें।

व्यसन के बंधन से मुक्ति की ओर — तुम्हारा पहला कदम
साधक, जब मन किसी व्यसन के जाल में फंस जाता है, तो यह समझना बहुत जरूरी है कि तुम अकेले नहीं हो। हर मनुष्य के जीवन में कुछ न कुछ आदतें होती हैं, जो कभी-कभी हमें अपने नियंत्रण से बाहर कर देती हैं। लेकिन भगवद गीता हमें यह सिखाती है कि हम अपने मन और इच्छाओं के स्वामी हैं। व्यसन एक प्रकार का बंधन है, जिसे तोड़ना संभव है — बस सही दृष्टिकोण और आत्म-नियंत्रण की जरूरत है।

आसक्ति के बंधन से मुक्ति की ओर पहला कदम
प्रिय मित्र, जब हम अपने मन की गहराई में झांकते हैं, तो अक्सर पाते हैं कि हमारी इच्छाएँ और आदतें हमें अपने वश में कर लेती हैं। ये आसक्तियाँ हमें अपनी पहचान, सुख-दुख और शांति से दूर ले जाती हैं। परंतु समझिए, आप अकेले नहीं हैं, यही संघर्ष मानव जीवन का हिस्सा है। भगवद् गीता में इस समस्या का मूल कारण और समाधान दोनों ही स्पष्ट रूप से बताए गए हैं।

अंधकार से प्रकाश की ओर: व्यसन से मुक्ति का मार्ग
साधक, व्यसन की जंजीरों में फंसे मन को छुड़ाना कठिन प्रतीत होता है, परंतु याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। हर आत्मा में परिवर्तन और सुधार की असीम शक्ति होती है। भगवद गीता की दिव्य शिक्षाएँ तुम्हें इस अंधकार से बाहर निकालने का प्रकाश स्तंभ बन सकती हैं। चलो, इस यात्रा की शुरुआत साथ करते हैं।