ego

Mind Emotions & Self Mastery

How can I control my negative thoughts as per the Gita?


Discover Gita's timeless wisdom for inner peace and emotional balance. Find clarity amidst life's chaos.

Life Purpose, Work & Wisdom

What does the Bhagavad Gita say about finding my true calling?


Uncover ancient principles for meaningful work and a life driven by purpose. Navigate your path with spiritual insight.

Relationships & Connection

How can I improve my relationships with others using Gita's teachings?

Build harmonious connections rooted in spiritual understanding. Transform your interactions with love and compassion

Devotion & Spritual Practice

What is the best way to start a daily spiritual practice according to the Gita?

Deepen your connection with the Divine through authentic practices. Cultivate a heart filled with devotion and inner joy.

Karma Cycles & Life Challenges

How can I understand and overcome life's challenges through the law of Karma?

Navigate life's ups and downs with a deeper understanding of Karma. Find strength and resilience in every experience.

मान्यता की चाह: क्या यह गलत है?
साधक,
तुम्हारे मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या कार्यस्थल पर मान्यता और प्रशंसा की इच्छा रखना गलत है। यह इच्छा तुम्हारे अंदर छुपी हुई स्वाभाविक मानवीय भावनाओं का प्रतिबिंब है। चिंता मत करो, तुम अकेले नहीं हो। हर व्यक्ति चाहता है कि उसके प्रयासों को सराहा जाए, उसकी मेहनत को पहचाना जाए। आइए, भगवद गीता की दिव्य दृष्टि से इस उलझन को सुलझाएं।

अहंकार के साये से बाहर: सफलता की असली राह
साधक,
जब हम अपने व्यावसायिक जीवन में सफलता की ओर बढ़ते हैं, तो अहंकार का प्रकोप अक्सर हमारे सबसे बड़े विरोधी बन जाता है। तुम्हारा यह प्रश्न बहुत गहरा है, क्योंकि सफलता का असली सार अहंकार को त्याग कर विनम्रता में छिपा होता है। चलो, हम भगवद गीता के प्रकाश में इस उलझन को सुलझाते हैं।

आत्म-प्रेम की ओर: अहंकार से परे एक सच्चा रिश्ता
प्रिय मित्र, जब हम "आत्म-प्रेम" की बात करते हैं, तो अक्सर एक भ्रम होता है कि क्या यह अहंकार का पोषण तो नहीं कर रहा? यह उलझन बिल्कुल स्वाभाविक है। क्योंकि प्रेम का सच्चा स्वरूप अहंकार से बिलकुल अलग होता है। आइए, भगवद गीता की अमूल्य शिक्षाओं के साथ इस रहस्य को समझें और आत्म-प्रेम को एक शुद्ध, सरल और जीवनदायी अनुभव बनाएं।

जब प्यार की छाँव में दर्द भी खिल उठता है
प्रिय मित्र, यह सवाल हमारे दिल की गहराई से उठता है — जब वही लोग, जिनसे हम सबसे अधिक प्रेम करते हैं, हमें चोट पहुँचाते हैं, तो मन टूट सा जाता है। यह अनुभव बहुत सामान्य है, और इसका अर्थ यह नहीं कि प्यार कमज़ोर है, बल्कि यह दर्शाता है कि हमारा दिल कितना संवेदनशील और खुला है। चलिए, हम इस उलझन को भगवद गीता की अमूल्य सीखों से समझने की कोशिश करते हैं।

अहंकार की आंधी में भी शांति बनाए रखना संभव है
साधक, जब अहंकार को चुनौती मिलती है, तो भीतर एक तूफान उठता है। यह स्वाभाविक है कि हमारा मन घबराए, क्रोध आए, और हम खुद को अस्थिर महसूस करें। परंतु याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। यह संघर्ष हर मानव के भीतर होता है। भगवद गीता में हमें ऐसे ही क्षणों के लिए अमूल्य मार्गदर्शन मिलता है, जो हमें संतुलन और शांति की ओर ले जाता है।

अहंकार की जंजीरों से मुक्ति: गीता का अनमोल उपहार
प्रिय शिष्य, यह प्रश्न तुम्हारे भीतर की गहराई को छूता है। अहंकार, वह सूक्ष्म आग है जो कभी-कभी हमारे मन को जलाती है, परंतु चिंता मत करो, तुम अकेले नहीं हो। भगवद गीता ने हजारों वर्षों से उस आग को बुझाने का रास्ता बताया है। आइए, मिलकर उस मार्ग पर चलें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 16, श्लोक 3
(असुरीय सम्पदः)

अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं तथा तथा।
मदं मदात्मानमाहं मां चाभिजाति पाण्डव॥

अपमानों के बीच भी अटल रहना — सच्ची शक्ति का रहस्य
साधक,
जब अपमानों की आग हमारे मन को झुलसा रही हो, तब लगता है कि शक्ति का अर्थ केवल प्रतिकार करना या गुस्से में फूट पड़ना है। परन्तु गीता हमें सिखाती है कि सच्ची शक्ति वह है जो अपमानों के बीच भी अपने मन को स्थिर, निर्मल और दयालु बनाए रखे। तुम अकेले नहीं हो, हर मानव के मन में कभी न कभी यह संघर्ष होता है। चलो, इस गहन विषय को गीता की अमृत वाणी से समझते हैं।

सच की परतों के पीछे छुपा अहंकार
साधक, जब हम झूठी विनम्रता की चादर ओढ़ते हैं, तो अक्सर उसका मूल कारण हमारा अहंकार होता है। यह अहंकार एक ऐसा आवरण है जो हमारी असुरक्षा, भय और स्वाभिमान की रक्षा करता है। तुम्हारा प्रश्न गहरा है, क्योंकि यह मन के उन झरनों को छूता है जहाँ से हमारी असली पहचान निकलती है। चलो, इस विषय की गहराई में गीता के प्रकाश से उतरते हैं।

अहंकार के अंधकार से कर्मयोग की ज्योति की ओर
साधक, जब अहंकार और गर्व के जंजीरों में बंधा मन बेचैन होता है, तब कर्मयोग एक प्रकाशस्तंभ की तरह मार्ग दिखाता है। तुम्हारी यह उलझन बिल्कुल स्वाभाविक है, क्योंकि अहंकार हमारे स्वभाव का वह पक्ष है जो हमें अपने अस्तित्व का भ्रम दिलाता है। परन्तु गीता की शिक्षाएँ हमें सिखाती हैं कि कर्मयोग के द्वारा हम इस भ्रम को कैसे दूर कर सकते हैं। चलो, इस पथ पर एक साथ चलें।

अहंकार के जाल में फंसे मन की पुकार
साधक, जब अहंकार हमारे निर्णयों को नियंत्रित करता है, तो हम स्वयं के भीतर की शांति से दूर हो जाते हैं। यह अहंकार हमें भ्रमित करता है, हमारे मन को घमंड और क्रोध की आग से जलाता है, और हमें सही मार्ग से भटका देता है। परन्तु याद रखो, तुम अकेले नहीं हो; हर मानव के मन में कभी न कभी यह संघर्ष होता है। आइए, हम गीता के दिव्य प्रकाश में इस उलझन को समझें।