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Mind Emotions & Self Mastery

How can I control my negative thoughts as per the Gita?


Discover Gita's timeless wisdom for inner peace and emotional balance. Find clarity amidst life's chaos.

Life Purpose, Work & Wisdom

What does the Bhagavad Gita say about finding my true calling?


Uncover ancient principles for meaningful work and a life driven by purpose. Navigate your path with spiritual insight.

Relationships & Connection

How can I improve my relationships with others using Gita's teachings?

Build harmonious connections rooted in spiritual understanding. Transform your interactions with love and compassion

Devotion & Spritual Practice

What is the best way to start a daily spiritual practice according to the Gita?

Deepen your connection with the Divine through authentic practices. Cultivate a heart filled with devotion and inner joy.

Karma Cycles & Life Challenges

How can I understand and overcome life's challenges through the law of Karma?

Navigate life's ups and downs with a deeper understanding of Karma. Find strength and resilience in every experience.

अहंकार की दीवार को तोड़ते हुए — सुधार का स्नेहिल मार्ग
साधक, जब हम किसी की गलती सुधारने बैठते हैं, तो अक्सर हमारे भीतर अहंकार की दीवार खड़ी हो जाती है। यह दीवार संवाद को बाधित करती है और रिश्तों में दूरी पैदा करती है। चिंता मत करो, तुम अकेले नहीं हो। यह संघर्ष मानव स्वभाव का हिस्सा है। आइए, भगवद गीता की अमृत वाणी से इस उलझन को सुलझाएं।

अहंकार: रिश्तों की छाया या प्रकाश?
साधक,
जब हम अपने दिल की गहराइयों में झांकते हैं, तो अक्सर पाते हैं कि रिश्तों की पीड़ा का एक बड़ा कारण हमारा अपना अहंकार होता है। यह अहंकार कभी-कभी हमारे प्रेम और समझदारी के रास्ते में दीवार बन जाता है। चिंता मत करो, तुम अकेले नहीं हो; हर मानव इस संघर्ष से गुजरता है। आइए, गीता के दिव्य प्रकाश में इस उलझन को समझें।

दिल की हलचल को समझो: "तुम अकेले नहीं हो"
साधक, यह बहुत सामान्य है कि हम अपनी हर बात को दिल से लगाते हैं। जब कोई हमारी बातों को समझ नहीं पाता, या हमारी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता, तो मन में चोट लगती है। लेकिन याद रखो, यह चोटें हमें कमजोर नहीं बनातीं, बल्कि हमें समझदारी और धैर्य की ओर ले जाती हैं। आइए, भगवद गीता की अमृत वाणी से इस उलझन को सुलझाएं।

अहंकार की जंजीरों से मुक्ति: समर्पण की शक्ति
साधक, जब अहंकार हमारे भीतर बढ़ता है, तो वह मन को जकड़ लेता है, हमें दूसरों से अलग और श्रेष्ठ समझने पर मजबूर करता है। यह एक भारी बोझ है जो हमारे मन को अशांत करता है। परन्तु भगवद् गीता हमें समर्पण की राह दिखाती है, जिससे यह अहंकार धीरे-धीरे कम होता है और मन शांत होता है। तुम अकेले नहीं हो, यह संघर्ष हर मानव के जीवन का हिस्सा है। चलो, इस पथ पर साथ चलें।

क्रोध और अहंकार को छोड़कर शांति की ओर बढ़ें
साधक, मैं समझता हूँ कि जब मन में क्रोध और अहंकार की लहरें उठती हैं, तो शेखी मारना या दूसरों को नीचा दिखाना एक तरह का बचाव बन जाता है। पर यह असली शक्ति नहीं, बल्कि मन की बेचैनी और असुरक्षा का स्वरूप है। चलिए, गीता के अमृत शब्दों के साथ इस उलझन को सुलझाते हैं और आंतरिक स्वीकृति की ओर कदम बढ़ाते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

"दुःखेष्वनुद्विग्नमना: सुखेषु विगतस्पृह: |
वीतरागभयक्रोध: स्थितधीर्मुनिरुच्यते ||"

— भगवद्गीता 2.56

अहंकार की आड़ में आध्यात्मिकता? – चलो इस भ्रम को समझें
साधक,
तुम्हारा यह प्रश्न बहुत ही गहन और महत्वपूर्ण है। अक्सर हम सोचते हैं कि आध्यात्मिक लोग अहंकार से परे होते हैं, लेकिन क्या सच में ऐसा होता है? क्या आध्यात्मिकता में अहंकार का कोई स्थान है? यह समझना जरूरी है क्योंकि अहंकार कभी भी छुपा रूप लेकर हमारे भीतर घुस आता है, चाहे हम कितने भी आध्यात्मिक क्यों न हों। आओ, इस सवाल का उत्तर भगवद गीता की अमृत वाणी से खोजें।

अहंकार के जाल से बाहर निकलना: नेतृत्व की सच्ची शक्ति
साधक, जब हम नेतृत्व की राह पर चलते हैं, तब अहंकार हमारे सबसे बड़े विरोधी बन सकते हैं। यह स्वाभाविक है कि हम अपने प्रयासों और उपलब्धियों से गर्व महसूस करें, लेकिन जब अहंकार हावी हो जाता है, तब वह हमारे निर्णयों को धुंधला कर देता है और संबंधों को कमजोर कर देता है। भगवद गीता में इस विषय पर गहरा प्रकाश डाला गया है, जो हमें सच्चे नेतृत्व का अर्थ समझाता है।

अहंकार की आंधी में खो जाना: क्या हम अपनी गलतियों को देख पाते हैं?
साधक, जब अहंकार हावी हो जाता है, तो वह हमारे मन के दरवाज़े पर एक भारी परदा डाल देता है। यह परदा हमें अपनी गलतियों से अंधा कर सकता है। लेकिन चिंता मत करो, यह अंधकार स्थायी नहीं है। चलो, भगवद गीता के प्रकाश में इस विषय को समझते हैं।

अहंकार से परे, आत्मविश्वास के सच्चे मार्ग पर
साधक, तुम्हारा यह प्रश्न बहुत ही सूक्ष्म और महत्वपूर्ण है। आज के इस युग में जहाँ अहंकार और आत्मविश्वास के बीच की रेखा अक्सर धुंधली हो जाती है, वहां तुम्हारा यह सवाल तुम्हारी अंतरात्मा की गहराई को दर्शाता है। चलो, हम मिलकर उस प्रकाश की ओर बढ़ें जो अहंकार को पिघला कर सच्चे आत्मविश्वास का दीप जलाए।

अहंकार की जंजीरों से मुक्त होने का मार्ग
साधक, जब अहंकार मन में घर कर जाता है, तब वह हमारे भीतर की शांति और सच्चाई के प्रकाश को ढक देता है। तुम अकेले नहीं हो, हर मानव के जीवन में अहंकार की लड़ाई होती है। यह समझना ज़रूरी है कि अहंकार को वश में करना क्यों आवश्यक है, ताकि हम अपने भीतर के सच्चे स्वरूप को पहचान सकें और जीवन में सच्ची प्रगति कर सकें।