तुम अकेले नहीं हो — अवांछितता के अंधकार में भी एक प्रकाश है
प्रिय शिष्य, जब मन में यह भाव उठता है कि मैं अवांछित हूँ, मुझे प्रेम नहीं मिलता, तो यह एक गहरा अकेलापन और भीतरी दूरी का अनुभव होता है। परन्तु जान लो, यह अनुभूति तुम्हें अकेला नहीं करती, बल्कि तुम्हें अपने भीतर छिपे उस दिव्य प्रेम से जुड़ने का एक अवसर देती है। चलो, गीता के शाश्वत शब्दों से इस उलझन को समझते हैं।