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Mind Emotions & Self Mastery
Life Purpose, Work & Wisdom
Relationships & Connection
Devotion & Spritual Practice
Karma Cycles & Life Challenges

अंक की चिंता से परे: तुम्हारे मूल्यांकन से तुम्हारा मूल्य नहीं जुड़ा है
प्रिय युवा मित्र, मैं जानता हूँ कि परीक्षा के अंक तुम्हारे लिए कितने महत्वपूर्ण हैं। वे तुम्हारे भविष्य का मार्गदर्शन करते हुए दिखते हैं, तुम्हारे आत्मसम्मान को प्रभावित करते हैं, और कभी-कभी तुम्हें घुटन में डाल देते हैं। लेकिन याद रखो, तुम केवल अपने अंकों से कहीं अधिक हो। आइए, गीता के प्रकाश में इस उलझन को समझते हैं।

आध्यात्मिक पथ पर खो जाने का अहसास: तुम अकेले नहीं हो
साधक, जब हम जीवन की दौड़ में व्यस्त हो जाते हैं, भौतिक वस्तुओं और उपलब्धियों के पीछे भागते हुए, तब कभी-कभी यह महसूस होता है कि कहीं हमने अपनी आत्मा की आवाज़ खो दी है। यह उलझन तुम्हारे भीतर की गहराई से उठ रही है, और यह प्रश्न तुम्हारे जागृति का पहला कदम है। आइए, भगवद गीता के प्रकाश में इस भ्रम को दूर करें।

धन की माया: चलो समझें गीता का संदेश
प्रिय मित्र,
जब मन धन के पीछे भागता है, तो वह अक्सर खुद को खो देता है। यह एक सामान्य संघर्ष है, और तुम अकेले नहीं हो। गीता हमें इस माया के जाल से बाहर निकलने का रास्ता दिखाती है, जिससे मन स्थिर और जीवन सरल बन सके। चलो इस उलझन को साथ मिलकर समझते हैं।

अंतिम यात्रा में परिवार: कृष्ण की दृष्टि से शांति और समर्पण
साधक, मृत्यु का समय जीवन का अंतिम अध्याय है, जहाँ मन अनेक भावों से घिरा होता है — चिंता, प्रेम, छूटने का भय, और परिवार की जिम्मेदारी का बोझ। यह स्वाभाविक है कि इस घड़ी में परिवार की चिंता आपके मन को भारी कर सकती है। परंतु श्रीकृष्ण हमें बताते हैं कि मृत्यु केवल शरीर की समाप्ति है, आत्मा की नहीं, और परिवार के प्रति हमारा दृष्टिकोण भी इसी समझ पर आधारित होना चाहिए।

साथ चलना है तो समझदारी से चलो — परिवार और जीवनसाथी के प्रति गीता की सीख
प्रिय जीवनसाथी और परिवार के प्रति लगाव की उलझनों में फंसे साथी,
आपके मन में जो भाव और प्रश्न हैं, वे बिल्कुल स्वाभाविक हैं। परिवार हमारा सबसे करीबी संसार है, जहां प्रेम भी होता है और कभी-कभी कष्ट भी। गीता हमें इस रिश्ते के मायने समझाती है — कैसे प्रेम और कर्तव्य के बीच संतुलन बनाएं, कैसे लगाव में उलझ कर खुद को खोने से बचें। चलिए, इस दिव्य संवाद से कुछ प्रकाश लेते हैं।

भोजन की लत से मुक्त होने की ओर पहला कदम
साधक, जब भोजन की लत मन को बाँध लेती है, तो वह हमारे जीवन की ऊर्जा को बाधित करती है। इस लत में हम अक्सर अपने शरीर और मन के स्वाभाविक संतुलन को भूल जाते हैं। लेकिन चिंता मत करो, तुम अकेले नहीं हो। भगवद् गीता में ऐसी अनेक शिक्षाएँ हैं जो हमें इस बंधन से मुक्त होने का मार्ग दिखाती हैं।

आसक्ति के बंधन से मुक्त होने का पहला कदम
साधक, जब मन किसी वस्तु, व्यक्ति या परिणाम से गहरे जुड़ जाता है, तो वह आसक्ति बन जाती है। यह आसक्ति हमारे सुख-दुख की जड़ बन जाती है। तुम्हारे मन की यह व्यथा समझता हूँ, क्योंकि हर कोई कभी न कभी इस जाल में फंसता है। पर याद रखो, तुम अकेले नहीं हो, और गीता में इसका समाधान भी है।

चलो प्रेम की परिपाटी समझें — छोड़ना भी एक कला है
साधक,
जब हम किसी से प्रेम करते हैं, तो उसका साथ हमारे मन को गहरा सुख देता है। परंतु जीवन की अनित्य धारा में, कभी-कभी हमें उन प्रियजनों को छोड़ना पड़ता है। यह छोड़ना, जो कभी-कभी विदा का दुःख लेकर आता है, गीता हमें कैसे समझाती है? आइए, इस प्रश्न को प्रेम और शाश्वत सत्य की दृष्टि से समझते हैं।

लगाव से मुक्त प्रेम की ओर — प्रेम की सच्ची स्वतंत्रता
प्रिय शिष्य,
तुम्हारे मन में यह उलझन है कि कैसे हम अपने प्यार को बनाए रखें, पर उसी के साथ लगाव को त्याग दें। यह सचमुच एक गहन प्रश्न है, क्योंकि प्रेम और लगाव अक्सर साथ-साथ चलते हैं। परंतु गीता हमें सिखाती है कि प्रेम का सच्चा स्वरूप वह है जो स्वतंत्र और निःस्वार्थ हो। आइए, इस रहस्य को समझें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 12, श्लोक 13-14
(भगवद् गीता 12.13-14)

आसक्ति और इच्छा की जंजीरों से मुक्त होने का पहला कदम
साधक, जब मन इच्छाओं और आसक्तियों के जाल में उलझ जाता है, तो आत्मा की शांति दूर हो जाती है। तुम अकेले नहीं हो; हर व्यक्ति की यात्रा में ये प्रश्न आते हैं। भगवद्गीता तुम्हें बताती है कि कैसे इन जंजालों से मुक्त हो कर, सच्ची आज़ादी और आनंद पाया जा सकता है।