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आलस्य की बेड़ियाँ तोड़ो — गीता से जागो!
प्रिय शिष्य, जब मन में सुस्ती और आलस्य की छाया गहराती है, तब यह समझना जरूरी है कि यह केवल एक क्षणिक अवस्था नहीं, बल्कि आत्मा के विकास में एक बाधा है। पर चिंता मत करो, तुम अकेले नहीं हो। हर व्यक्ति के जीवन में कभी न कभी आलस्य आता है, लेकिन गीता हमें सिखाती है कि कैसे उससे ऊपर उठकर कर्म और जागरूकता के मार्ग पर चलना है।

चलो यहाँ से शुरू करें: गलत आदतों से मुक्ति की ओर पहला कदम
प्रिय मित्र, यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि आप अपनी गलत आदतों या उन चीज़ों से छुटकारा पाना चाहते हैं जिन्हें आप गलत मानते हैं — यह पहले से ही एक बड़ा साहस और जागरूकता का परिचायक है। आप अकेले नहीं हैं; हर कोई जीवन में ऐसे संघर्षों से गुजरता है। आइए भगवद गीता के प्रकाश में इस उलझन को समझते हैं और इसे पार करने का मार्ग खोजते हैं।

इंद्रिय संयम: आत्मा की असली आज़ादी की कुंजी
साधक, जब मन और इंद्रियाँ अपनी माया में उलझ जाती हैं, तो आत्मा की शांति दूर हो जाती है। तुम्हारा यह प्रश्न — इंद्रिय संयम के बारे में — जीवन की सबसे गूढ़ समझ की ओर एक सुंदर कदम है। चिंता मत करो, तुम अकेले नहीं हो; हर व्यक्ति के मन में कभी न कभी यह संघर्ष आता है। आइए, हम भगवद गीता के दिव्य शब्दों से इस उलझन को सुलझाएं।

आत्मसंयम की ओर पहला कदम: लालसा पर विजय
साधक, यह समझना ही आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत है कि हमारी इच्छाएँ और लालसाएँ हमारे मन की अस्थिरता का प्रतिबिंब हैं। भोजन या चीनी की तीव्र लालसा भी उसी मन की हलचल का हिस्सा है। तुम अकेले नहीं हो, यह संघर्ष हर मानव के जीवन में आता है। आइए, गीता के शाश्वत प्रकाश में इस समस्या का समाधान खोजें।

स्क्रीन की गिरफ्त से मुक्त होने की ओर पहला कदम
साधक, आज की इस डिजिटल युग में हम सभी के जीवन में स्क्रीन का प्रभाव बहुत गहरा हो गया है। यह लत कभी-कभी हमें हमारे अपने मन और जीवन से दूर कर देती है। लेकिन याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। भगवद गीता की शिक्षाएँ हमें बताती हैं कि कैसे हम अपने मन को नियंत्रित कर सकते हैं और आत्मा की शांति पा सकते हैं।

दोहरे जाल से बाहर: अपने व्यवहार के चक्र को तोड़ना
प्रिय मित्र, जब हम किसी आदत या लत के चक्र में फँस जाते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे हम खुद को दोहरे जाल में पाते हैं — एक तरफ वह व्यवहार जो हमें हानि पहुंचाता है, और दूसरी तरफ उसका परिणाम जो हमें और भी गहरे डूबने पर मजबूर करता है। यह चक्र टूटना कठिन लगता है, लेकिन असंभव नहीं। आइए भगवद गीता की अमृत वाणी से इस राह को समझें।

व्यसन के जाल से मुक्ति की ओर पहला कदम
साधक, जब मन किसी आदत या व्यसन में फंस जाता है, तो वह अपने आप को खो देता है। यह एक ऐसा जाल है जो मन को भ्रमित करता है और आत्मा की शांति को छीन लेता है। तुम अकेले नहीं हो, हर व्यक्ति के मन में कभी न कभी ऐसी लड़ाई होती है। आइए, भगवद गीता के दिव्य प्रकाश से इस उलझन को समझें और उससे बाहर निकलने का मार्ग खोजें।

लालसाओं के जाल से बाहर निकलने का पहला कदम
साधक, जीवन में प्रलोभन और लालसाएँ हम सबके सामने आती हैं। ये हमारी आंतरिक शक्ति को परखती हैं और कभी-कभी हमें भ्रमित कर देती हैं। लेकिन याद रखो, तुम अकेले नहीं हो; हर व्यक्ति के मन में कभी न कभी ऐसी लड़ाई होती है। आइए, भगवद गीता की अमूल्य शिक्षाओं से इस जाल से बाहर निकलने का रास्ता खोजें।

बुरी आदतों से आज़ादी की ओर पहला कदम
साधक, जब हम बुरी आदतों के जाल में फंस जाते हैं, तब लगता है जैसे हम स्वयं की पकड़ खो बैठे हैं। लेकिन याद रखो, हर अंधेरे के बाद उजाला आता है। तुम्हारे भीतर वह शक्ति है जो इन आदतों को तोड़ सकती है। चलो, भगवद गीता की अमूल्य बुद्धिमत्ता से इस राह को समझते हैं।

व्यसन के बंधन से मुक्ति की ओर — तुम्हारा पहला कदम
साधक, जब मन किसी व्यसन के जाल में फंस जाता है, तो यह समझना बहुत जरूरी है कि तुम अकेले नहीं हो। हर मनुष्य के जीवन में कुछ न कुछ आदतें होती हैं, जो कभी-कभी हमें अपने नियंत्रण से बाहर कर देती हैं। लेकिन भगवद गीता हमें यह सिखाती है कि हम अपने मन और इच्छाओं के स्वामी हैं। व्यसन एक प्रकार का बंधन है, जिसे तोड़ना संभव है — बस सही दृष्टिकोण और आत्म-नियंत्रण की जरूरत है।